3 November 2021

7821 - 7825 दिल मोहब्बत इनायात क़रार मंज़ूर आँख़ नज़र झलक़ उमंग बेचैनी बेचैन शायरी

 

7821
क़ुछ मोहब्बतक़ो  था,
चैनसे रख़ना मंज़ूर...
और क़ुछ उनक़ी इनायातने,
ज़ीने  दिया.......
                            क़ैफ़ भोपाली

7822
मेरे बेचैन दिलक़ो,
क़रार मिल ज़ाए...
तेरा चेहरा,
ज़ब भी नज़र आये...!!!

7823
आँख़ बेचैन तिरी,
एक़ झलक़क़ी ख़ातिर...
दिल हुआ ज़ाता हैं बेताब,
मचलनेक़े लिए.......
                    शक़ील आज़मी

7824
बेचैन उमंगोक़ो,
बहलाक़े चले ज़ाना...
हम तुमक़ो  रोकेंगे,
बस आक़े चले ज़ाना.......

7825
मैं बोली,
क़्यूँ बहुत बेचैन रहते हो...?
वो बोला,
क़हर हैं, दिलक़ी लगी मेरी...!
                       फ़ौज़िया रबाब

1 November 2021

7816 - 7820 दिल आँख तलाश एहसास प्यास ज़ज़्बात ज़िंदगी रात चाँद सुकून बेचैनी बेचैन शायरी

 

7816
इतनी बेचैनीसे तुमक़ो क़िसक़ी तलाश हैं...
वो क़ौन हैं ज़ो तेरी आँखोंक़ी प्यास हैं...
ज़बसे मिला हूँ तुमसे यही सोचता हूँ मैं,
क़्यो मेरे दिलक़ो हो रहा तेरा एहसास हैं.......!

7817
ज़ज़्बातक़े समुंदर,
बेचैन हो रहे थे l
ज़ब चाँद था अधूरा,
ज़ब रात साँवली थी ll
त्रिपुरारि

7818
ग़मक़ा आलम तब भी था और आज़ भी हैं...
सुकूनक़ी तलाश तब भी थी और आज़ भी हैं...
बेसबब ही जाता हैं हर बातपें रोना,
दिलक़ी बेचैनी तब भी थी और आज़ भी हैं.......!

7819
इक़ पल क़रार आता,
दो दिनक़ी ज़िंदगीमें...
बेचैनियाँ ही मिलतीं,
सूरत बदल बदलक़े.......
क़लील झांसवी

7820
मुझे इतना याद आक़र,
बेचैन करों तुम...
एक यही सितम क़ाफ़ी हैं,
क़ि साथ नहीं हो तुम.......

31 October 2021

7811 - 7815 साँसें आँखें ख़्याल रूबरू ख़्वाब फ़िक्र अज़ीब इंतज़ार क़रार बेचैनी बेचैन शायरी

 

7811
साँसोंमें अज़ीबसी बेचैनी,
दिलमें तेरा ही ख़्याल होता हैं l
ग़ुज़र ज़ाती हैं रात ख़्वाबोंमें,
फ़िर भी सुबह तुझसे ही...
रूबरू होनेक़ा इंतज़ार होता हैं ll

7812
अज़बसा चैन था हमक़ो,
क़ि ज़ब थे हम बेचैन...
क़रार आया तो ज़ैसे,
क़रार ज़ाता रहा.......
ज़ावेद अख़्तर

7813
यहाँ हम बेचैन,
वहाँ तुम बेचैन...
ज़ब मिले हम तुम,
तब ही मिले चैन...!!!

7814
क़भी ये फ़िक्र क़ि,
वो याद क्यूँ क़रेंगे हमें...
क़भी ख़्याल क़ि,
ख़तक़ा ज़वाब आएगा.......

7815
बेचैन रहती हैं आँखें मेरी,
एक तू ही अच्छा लग़ता हैं l
झूठी लग़ती हैं दुनिया सारी,
एक तू ही सच्चा लग़ता हैं ll

7806 - 7810 दिल हाल अश्क़ तसल्ली क़दर तन्हाई ख़्वाब ख़्याल चाँद बेचैनी बेचैन शायरी

 

7806
भोले बनक़र हाल पूछ,
बहते हैं अश्क़ तो बहने दो...
ज़िससे बढ़े बेचैनी दिलक़ी,
ऐसी तसल्ली रहने दो.......
                          आरज़ू लखनवी

7807
बेचैन इस क़दर था क़ि,
सोया रातभर ;
पलक़ोंसे लिख़ रहा था,
तिरा नाम चाँदपर...!

7808
मेरे बेचैन ख़्यालोंपें,
उभरने वाली,
अपने ख़्वाबोंसे बहला,
मेरी तन्हाईक़ो.......
                   क़तील शिफ़ाई

7809
बड़ी मुश्किलसे सीख़ा हैं,
ख़ुश रहना उनक़े बगैर...
सुना हैं ये बात भी उन्हें,
थोडा परेशान क़रती हैं...!!!

7810
उसे बेचैन क़र ज़ाऊँगा मैं भी,
ख़ामोशीसे गुज़र ज़ाऊँगा मैं भी...!

29 October 2021

7801 - 7805 दिल इश्क़ मोहब्बत ख़ामोशी वज़ह सुक़ून ख़ता रूह क़रवट बेचैनी बेचैन शायरी

 

7801
इश्क़ दिलक़ा,
वो सुक़ून हैं...
ज़ो रूहक़ो सदा,
बेचैन रख़ती हैं.......

7802
क़भी रातोंक़ी क़रवटें,
क़भी दिनक़ी बेचैनियाँ...
ये मोहब्बत ज़रा,
मोहब्बतसे पेश हमसे...

7803
हमारी मोहब्बत ज़रूर,
अधूरी रह ग़यी होग़ी...
पिछले ज़नममें,
वरना इस ज़नमक़ी तेरी ख़ामोशी,
मुझे इतना बेचैन क़रती.......

7804
क़ोई कुछ भी ना क़हे,
तो पता क्या हैं...
इस बेचैन ख़ामोशीक़ी,
वज़ह क़्या हैं...
उन्हें ज़ाक़े क़ोई क़हे,
हम ले लेंगे ज़हर भी...
वो सिर्फ़ ये तो बता दे,
मेरी ख़ता क़्या हैं.......

7805
ख़ामोशी, बेचैनी,
यादें तेरी, मेरा ख़ालीपन...
क़ितना कुछ हैं क़मरेमें,
तेरे और मेरे सिवा.......

28 October 2021

7796 - 7800 दर्द उल्फत सुक़ून चैन नसीब साहिल दीवार मंज़िल क़रवट बेचैनी बेचैन शायरी

 

7796
बेचैनिया और दर्द--उल्फत मुझक़ो मिले सारी,
तुझक़ो सुक़ूनो चैन नसीब हो...
क़रवटे थी बेचैनियाँ थी,
क़्या ग़ज़बक़ी नींद थी मोहब्बतसे पहले...!!!

7797
मुसाफ़िर अपनी मंज़िलपर,
पहुँचक़र चैन पाते हैं l
वो मौजें सर पटक़ती हैं,
ज़िन्हें साहिल नहीं मिलता ll
मख़मूर देहलवी

7798
यूँ भी उनक़ो चैन नहीं था,
यूँ भी उनक़ो चैन नहीं हैं...
दीवारोंसे झाँक़ रहे हैं,
दीवारें उठवाक़र लोग़...

7799
ख़ेती क़रक़े जो,
ख़ुश नहीं हो पाता हैं...
उसक़े ज़ीवनमें,
क़हीं नहीं चैन आता हैं ll

7800
चीरक़े ज़मीनक़ो, मैं उम्मीद बोता हूँ;
मैं क़िसान हूँ, चैनसे क़हाँ सोता हूँ;
वो लूट रहे हैं सपनोंक़ो,
मैं चैनसे क़ैसे सो ज़ाऊँ...?
वो बेच रहे हैं भारतक़ो,
ख़ामोश मैं क़ैसे हो ज़ाऊँ.......?

26 October 2021

7791 - 7795 दिल प्यार ज़िन्दग़ी ख़बर इज़हार आँख ख़्वाब ज़िस्म चैन शायरी

 

7791
चैन मिल ज़ाए,
दो घड़ीक़े लिए...
क़म नहीं मेंरी,
ज़िन्दग़ीक़े लिए...

7792
दिल चुराक़र आप तो,
बैठे हुए हैं चैनसे...
ढूंढने वालेसे पूछे क़ोई,
क़्या ज़ाता रहा.......
दाग़ देहलवी

7793
चैन ख़ो ज़ानेक़ा,
इज़हार ज़रूरी तो नहीं l
यह तमाशा सरे आम,
ज़रुरी तो नहीं l
मुझे था प्यार तेरी रूहसे,
और अब भी हैं l
तेरे ज़िस्मसे हो क़ोई,
सरोक़ार ज़रूरी तो नहीं ll

7794
आँखोंमे ख़्वाब उतरने नहीं देता,
वो शख़्स मुझे चैनसे मरने नहीं देता...
बिछड़े तो अज़ब प्यार ज़ताता हैं ख़तोंमें,
मिल ज़ाए तो फिर हदसे गुज़रने नहीं देता !!!

7795
तुम आए तो क़्या सहर हुई,
हाँ मग़र चैनसे बसर हुई...
मेरा नाला सुना ज़मानेने,
एक़ तुम हो ज़िसे ख़बर हुई.......

22 October 2021

7786 - 7790 दिल याद इश्क़ इंतज़ार लफ्ज़ मतलब चैन शायरी

 

7786
तेरे एक़-एक़ लफ्ज़क़ो,
हज़ार मतलब पहनाये हमने...
चैनसे सोने ना दिया,
तेरी अधूरी बातोंने हमें...

7787
सुनो, क़्यूँ आप मेरे दिलमें;
इतनी ज़ग़ह ले लेती हो...?
ना ख़ुद चैनसे रहती हो,
ना मुझे चैनसे रहने देती हो...!!!

7788
बैचैन तो होते हैं मग़र,
तुझे याद क़िये बग़ैर,
चैन भी तो नहीं.......!

7789
तुम चैन हो, क़रारा हो,
मेरा इश्क़ हो,
मेरा प्यार हो,
बरसों क़िया ज़िसका मैंने...
तुम वो इंतज़ार हो.......

7790
दिलक़ी चोटोंने क़भी,
चैनसे रहने दिया...
ज़ब चली सर्द हवा,
मैंने तुझे याद क़िया.......
                 जोश मलीहाबादी

21 October 2021

7781 - 7785 ज़ख़्म हौसला साँसे याद सिलसिला नतीज़ा ज़िंदगी बेरुख़ी बावज़ूद शायरी

 

7781
एक़ ईमानदार क़िसानक़ो,
ड़रे सहमें हुए देख़ा हैं...
मेहनत क़रनेक़े बावज़ूद,
भूख़से लड़ते हुए देख़ा हैं...

7782
ज़ख़्मोंक़े बावज़ूद,
मेरा हौसला तो देख़...
तू हँसी तो मैं भी,
तेरे साथ हँस दिया.......!

7783
साँसोंक़े सिलसिलेक़ो,
ना दो ज़िंदगीक़ा नाम...
ज़ीनेक़े बावज़ूद भी,
मर ज़ाते हैं क़ुछ लोग़...

7784
निक़ला नहीं हैं,
क़ोई नतीज़ा यहाँ ज़फ़र ;
क़रनेक़े बावज़ूद...
भरनेक़े बावज़ूद...
ज़फ़र इक़बाल

7785
चाहा हैं तुझक़ो,
तेरी बेरुख़ीक़े बावज़ूद...
ज़िंदगी,
तू याद क़रेगी क़भी हमें.......!

20 October 2021

7776 - 7780 मुक़द्दर तस्वीर ज़हर ज़ख़्म दर्द नाराज़गी वज़ूद शायरी

 

7776
तस्वीरक़े हर रंग़क़ा,
अपना ही वज़ूद होता हैं !
ज़ीतता वहीं हैं ज़ो,
हर वक़्त मुक़द्दरसे लड़ता हैं !!!

7777
अग़र हैं इंसानक़ा मुक़द्दर,
ख़ुद अपनी मिट्टीक़ा रिज़्क़ होना...
तो फ़िर ज़मींपर ये आसमाँक़ा,
वज़ूद क़िस क़हरक़े लिए हैं.......
ग़ुलाम हुसैन साज़िद

7778
एक ही ज़ख़्म नहीं,
पूरा वज़ूद ही ज़ख़्मी हैं...!
दर्द भी हैरान हैं,
आख़िर कहाँ कहाँसे उठे...!!!

7779
ये एक़ रोज़ हमारा.
वज़ूद डस लेग़ा l
उग़ल रहे हैं ज़ो,
ये ज़हर हम हवाओंमें... ll
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

7780
मेरी नाराज़गीक़ा,
क़ोई वज़ूद नहीं हैं,
क़िसीक़े लिए...
मुझ ज़ैसे लोग़ अक़्सर,
यूँ ही भुला दिए ज़ाते हैं,
क़भी - क़भी.......