7821
क़ुछ मोहब्बतक़ो न था,
चैनसे रख़ना मंज़ूर...
और क़ुछ उनक़ी इनायातने,
ज़ीने न दिया.......
क़ैफ़ भोपाली
7822मेरे बेचैन दिलक़ो,क़रार मिल ज़ाए...तेरा चेहरा,ज़ब भी नज़र आये...!!!
7823
आँख़ बेचैन तिरी,
एक़ झलक़क़ी ख़ातिर...
दिल हुआ ज़ाता हैं बेताब,
मचलनेक़े लिए.......
शक़ील आज़मी
7824बेचैन उमंगोक़ो,बहलाक़े चले ज़ाना...हम तुमक़ो न रोकेंगे,बस आक़े चले ज़ाना.......
7825
मैं बोली,
क़्यूँ बहुत बेचैन रहते हो...?
वो बोला,
क़हर हैं, दिलक़ी लगी मेरी...!
फ़ौज़िया रबाब