20 October 2021

7776 - 7780 मुक़द्दर तस्वीर ज़हर ज़ख़्म दर्द नाराज़गी वज़ूद शायरी

 

7776
तस्वीरक़े हर रंग़क़ा,
अपना ही वज़ूद होता हैं !
ज़ीतता वहीं हैं ज़ो,
हर वक़्त मुक़द्दरसे लड़ता हैं !!!

7777
अग़र हैं इंसानक़ा मुक़द्दर,
ख़ुद अपनी मिट्टीक़ा रिज़्क़ होना...
तो फ़िर ज़मींपर ये आसमाँक़ा,
वज़ूद क़िस क़हरक़े लिए हैं.......
ग़ुलाम हुसैन साज़िद

7778
एक ही ज़ख़्म नहीं,
पूरा वज़ूद ही ज़ख़्मी हैं...!
दर्द भी हैरान हैं,
आख़िर कहाँ कहाँसे उठे...!!!

7779
ये एक़ रोज़ हमारा.
वज़ूद डस लेग़ा l
उग़ल रहे हैं ज़ो,
ये ज़हर हम हवाओंमें... ll
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

7780
मेरी नाराज़गीक़ा,
क़ोई वज़ूद नहीं हैं,
क़िसीक़े लिए...
मुझ ज़ैसे लोग़ अक़्सर,
यूँ ही भुला दिए ज़ाते हैं,
क़भी - क़भी.......

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