18 October 2021

7766 - 7770 नफ़रत मोहब्बत याद मौज़ूदग़ी अंज़ान निग़ाह हक़ीक़त लफ्ज़ बेरूख़ी वज़ूद शायरी

 

7766
नफ़रतक़ा ख़ुद क़ोई,
वज़ूद नहीं होता...l
ये तो मोहब्बतक़ी,
ग़ैर मौज़ूदग़ीक़ा नतीज़ा हैं...ll

7767
आपक़ी याद मेरी ज़ान हैं l
शायद इस हक़ीक़तसे,
आप अंज़ान हैं l
मुझे ख़ुद नहीं पता क़ी,
मेरा वज़ूद क़्या हैं l
शायद आपक़ा प्यार ही, 
मेरी पहचान हैं ll

7768
अपने वज़ूदपें इतना तो,
यक़ीन हैं हमें कि...
क़ोई दूर तो हो सक़ता हैं हमसे,
पर हमें भूल नहीं सक़ता.......!

7769
तेरी निग़ाह--नाज़में,
मेरा वज़ूद-बे-वज़ूद...
मेरी निगाह--शोक़में,
तेरे सिवा क़ोई नहीं...!!!

7770
वो लफ्ज़ कहाँसे लाऊं,
ज़ो तेरे दिलक़ो मोम क़र दें ;
मेरा वज़ूद पिघल रहा हैं,
तेरी बेरूख़ीसे.......ll

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