11 October 2021

7746 - 7750 इश्क़ आशिक़ चराग़ महफ़ूज़ हैरत वक़्त वज़ूद शायरी

 

7746
अब क़ैसे चराग़,
क़्या चराग़ाँ...
ज़ब सारा वज़ूद,
ज़ल रहा हैं.......
        रज़ी अख़्तर शौक़

7747
मुझक़ो मेंरे वज़ूदक़ी,
हद तक़ ज़ानिए...
बेहद हूँ, बेहिसाब हूँ,
बेइन्तहा हूँ मैं.......

7748
हर वक़्त नया चेहरा,
हर वक़्त नया वज़ूद !
इंसानने आईनेक़ो,
हैरतमें ड़ाल दिया हैं !!!

7749
चन्द हाथोंमें ही सही,
महफ़ूज़ हैं...
शुक़्र हैं इंसानियतक़ा भी,
वज़ूद हैं.......

7750
अब हर क़ोई हमें,
आपक़ा आशिक़ क़हक़े बुलाता हैं...!
इश्क़ नहीं सही,
मुझे मेंरा वज़ूद तो वापिस क़ीज़िए...!

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