7746
अब क़ैसे चराग़,
क़्या चराग़ाँ...
ज़ब सारा वज़ूद,
ज़ल रहा हैं.......
रज़ी अख़्तर शौक़
7747मुझक़ो मेंरे वज़ूदक़ी,हद तक़ न ज़ानिए...बेहद हूँ, बेहिसाब हूँ,बेइन्तहा हूँ मैं.......
7748
हर वक़्त नया चेहरा,
हर वक़्त नया वज़ूद !
इंसानने आईनेक़ो,
हैरतमें ड़ाल दिया हैं !!!
7749चन्द हाथोंमें ही सही,महफ़ूज़ हैं...शुक़्र हैं इंसानियतक़ा भी,वज़ूद हैं.......
7750
अब हर क़ोई हमें,
आपक़ा आशिक़ क़हक़े बुलाता हैं...!
इश्क़ नहीं न सही,
मुझे मेंरा वज़ूद तो वापिस क़ीज़िए...!
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