6 October 2021

7726 - 7730 महबूब ज़वानी रूह ख़ामुशी महक़ निग़ाहें आँख़ें वज़ूद शायरी

 

7726
मिरे महबूब इतराते फ़िरते थे,
ज़वानीपें अपनी...
मिरे बिना अपना वज़ूद,
ज़ो देख़ा तो रूह क़ांप ग़ई...

7727
उसक़ा वज़ूद,
ख़ामुशीक़ा इश्तिहार हैं...
लग़ता हैं एक़ उम्रसे,
वो मक़बरोंमें हैं.......
तारिक़ ज़ामी

7728
मेरी आँख़ोंमें,
तू अपना वज़ूद रहने दे !
क़ुछ देरही सही,
मुझे तू अपने क़रीब रहने दे...!!!

7729
महक़ जाता हैं वज़ूद मेरा,
ज़ब तुम साथ मेरे होते हो l
फ़िर ज़मानेक़ा क़्या,
वो मेरे साथ हो ना हो ll

7730
यह गुमशुम चेहरा,
ये झुक़ी निग़ाहें,
और ख़ोया ख़ोयासा...
वज़ूद मेरा...!!!

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