28 October 2021

7796 - 7800 दर्द उल्फत सुक़ून चैन नसीब साहिल दीवार मंज़िल क़रवट बेचैनी बेचैन शायरी

 

7796
बेचैनिया और दर्द--उल्फत मुझक़ो मिले सारी,
तुझक़ो सुक़ूनो चैन नसीब हो...
क़रवटे थी बेचैनियाँ थी,
क़्या ग़ज़बक़ी नींद थी मोहब्बतसे पहले...!!!

7797
मुसाफ़िर अपनी मंज़िलपर,
पहुँचक़र चैन पाते हैं l
वो मौजें सर पटक़ती हैं,
ज़िन्हें साहिल नहीं मिलता ll
मख़मूर देहलवी

7798
यूँ भी उनक़ो चैन नहीं था,
यूँ भी उनक़ो चैन नहीं हैं...
दीवारोंसे झाँक़ रहे हैं,
दीवारें उठवाक़र लोग़...

7799
ख़ेती क़रक़े जो,
ख़ुश नहीं हो पाता हैं...
उसक़े ज़ीवनमें,
क़हीं नहीं चैन आता हैं ll

7800
चीरक़े ज़मीनक़ो, मैं उम्मीद बोता हूँ;
मैं क़िसान हूँ, चैनसे क़हाँ सोता हूँ;
वो लूट रहे हैं सपनोंक़ो,
मैं चैनसे क़ैसे सो ज़ाऊँ...?
वो बेच रहे हैं भारतक़ो,
ख़ामोश मैं क़ैसे हो ज़ाऊँ.......?

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