7731
मुझे शक़ हैं,
होने न होनेपें ख़ालिद...
अग़र हूँ,
तो अपना पता चाहता हूँ...
ख़ालिद मुबश्शिर
7732हमारी ही रूहक़ो,वज़ूदसे ज़ुदा क़र ग़या...एक़ शक़्स ज़िंदगीमें आया,क़यामतक़ी तरह.......
7733
अदा हुआ न क़र्ज़,
और वज़ूद ख़त्म हो ग़या ;
मैं ज़िंदगीक़ा देते देते,
सूद ख़त्म हो ग़या.......
फ़रियाद आज़र
7734तेरी मर्ज़ीसे ढ़ल ज़ाऊँ,हर बार ये मुमकिन तो नहीं...मेरा भी अपना वज़ूद हैं,मैं क़ोई आईना तो नहीं.......!
7735
मेरा वज़ूद ख़त्म हुआ,
अब सिर्फ साँसें चलती हैं...
इश्क़क़ा ज़नाज़ा तुम भी देख़ लो,
सच्ची मोहब्बत क़ैसे ज़लती हैं.......!
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