21 October 2021

7781 - 7785 ज़ख़्म हौसला साँसे याद सिलसिला नतीज़ा ज़िंदगी बेरुख़ी बावज़ूद शायरी

 

7781
एक़ ईमानदार क़िसानक़ो,
ड़रे सहमें हुए देख़ा हैं...
मेहनत क़रनेक़े बावज़ूद,
भूख़से लड़ते हुए देख़ा हैं...

7782
ज़ख़्मोंक़े बावज़ूद,
मेरा हौसला तो देख़...
तू हँसी तो मैं भी,
तेरे साथ हँस दिया.......!

7783
साँसोंक़े सिलसिलेक़ो,
ना दो ज़िंदगीक़ा नाम...
ज़ीनेक़े बावज़ूद भी,
मर ज़ाते हैं क़ुछ लोग़...

7784
निक़ला नहीं हैं,
क़ोई नतीज़ा यहाँ ज़फ़र ;
क़रनेक़े बावज़ूद...
भरनेक़े बावज़ूद...
ज़फ़र इक़बाल

7785
चाहा हैं तुझक़ो,
तेरी बेरुख़ीक़े बावज़ूद...
ज़िंदगी,
तू याद क़रेगी क़भी हमें.......!

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