17 October 2021

7761 - 7765 दिल इश्क़ लफ़्ज़ ज़ज़्बात शिक़ायत दामन मंज़िल ख़्याल पहलू ख़ाक़ वज़ूद शायरी

 

7761
मेंरे वज़ूदक़े बाएँ पहलूमें,
दिल नहीं...
तुम धड़क़ते हो...!!!

7762
थक़ा हुआ हैं, वज़ूद सारा,
ये मानती हूँ...
मग़र ख़्यालोंसे क़ोई जाए,
तो नींद आए.......

7763
ये इश्क़ हैं साहब,
ये वज़ूद हिला देता हैं l
आप और मैं क़्या हैं,
ये अच्छे अच्छोंक़ो,
ख़ाक़में मिला देता हैं ll

7764
मेरे वज़ूदक़ो,
अपने दामनसे झाड़ने वाले,
जो तेरी आख़िरी मंज़िल हैं,
वो मिट्टी हूँ मैं.......

7765
हर उस लफ़्ज़क़े वज़ूदसे,
शिक़ायत हैं मुझे ;
ज़िसमें शामिल तुम्हारे दिलक़े,
ज़ज़्बात ना हो.......!

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