7736
उसक़े वज़ूदसे,
बनी हूँ मैं...!
पहले ज़िन्दा थी,
अब ज़ी रही हूँ मैं...!!!
7737तेरी यादसे ही,महक़ ज़ाता हैं वज़ूद मेरा...!यक़ीनन ये फ़क़त इश्क़ नहीं,क़ोई ज़ादू हैं तेरा.......!
7738
तेरे वज़ूदसे हैं,
मेरे ग़ुलिस्तांमें रौनक़ें सारी...
तेरे बग़ैर इस दुनियाक़ो,
हम वीरान लिख़ते हैं.......
7739छू लिया तूने आक़र क़े,इस तरह मेरा वज़ूद...साँसभी तेरी अब मुझे,अपने ज़ैसी ही लग़ती हैं...!!!
7740
मेरी फ़ूलसी फ़ितरत,
तेरा क़ाँटेंदार वज़ूद...
तो क़्यों ना मिलक़र हम,
गुलाब हो जाएं.......!
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