3 August 2017

1606 - 1610 दिल दुनियाँ ज़िन्दगी कम्बखत मुलाकात लम्हे पंख गम जख्म दुआ शायरी


1606
माना की चन्द लम्होंकी,
मुलाकात थी ।
मगर सच ये भी हैं,
वो लम्हे ज़िन्दगी बन गए !!!

1607
इस बार तुम जाओ,
तो उनके पंख मत कतरना;
तुम्हारे बाद ये लम्हे,
बस रेंगते रहते हैं.......

1608
छोटेसे दिलमें गम बहुत हैं ,
जिन्दगीमें मिले जख्म बहुत हैं ,
मार ही डालती कबकी ये दुनियाँ हमें ,
कम्बखत दोस्तोंकी दुआओंमें दम बहुत हैं l

1609
जहां हो, जैसे हो, वहीं...
वैसे ही रहना तुम l
तुम्हें पाना जरुरी नहीं,
तुम्हारा होना ही काफी हैं l.......

1610
तेरे जानेके बाद,
कौन रोकता मुझे;
जी भरके खुदको,
बरबाद किया.......

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