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3 August 2018

3106 - 3110 इश्क साथ बात बारीश ख़्वाब लम्हा समझते भूल लुफ्त मौत जुदाई रिश्ते विश्वास खत्म धोखे शायरी


3106
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहे,
आओ हम साथमें कहते सुनते;
सुनते कहते इन बातोंकी...
बारीशमें भीग जाए।

3107
मेरा तुझसे मिलना...
मेरे लिए ख़्वाब हीं,
पर... ;
मैं तुझे भूल जाऊ,
ऐसा लम्हा मेरे पास हीं...

3108
लुफ्त--इश्क,
सिर्फ वो ही समझते हैं...
दिल जिनके धडकते नहीं,
सुलगते हैं.......!

3109
ना जाने मेरी मौत कैसी होगी!
पर ये तय हैं;
तेरी जुदाईसे,
बेहतर होगी.......!

3110
ये रिश्ते भी अजीब होते हैं...
बिना विश्वासके शुरू नहीं होते,
और बिना धोखेके,
खत्म नहीं होते.......!