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16 December 2021

7966 - 7970 इश्क़ फ़ितरत हसरत आँख़ें आसान मुश्क़िल दर्द दीदार बेताबी शायरी

 

7966
मेरी बेताबीक़ी मुश्क़िल,
अब आसाँ हो ग़ई...
बढ़ गया दर्द--दिल--बेताब,
तो क़म हो ग़या...

7967
तुझक़ो पाक़र भी,
क़म हो सक़ी बेताबी--दिल ;
इतना आसान तेरे,
इश्क़क़ा ग़म था ही नहीं...!

7968
नाहक़ हैं हवसक़े बंदोंक़ो,
नज़्ज़ारा--फ़ितरतक़ा दावा l
आँख़ोंमें नहीं हैं बेताबी,
दीदारक़ी बातें क़रते हैं ll

7969
ता-फ़लक़ ले ग़ई,
बेताबी--दिल...
तब बोले हज़रत--इश्क़, क़ि
पहला हैं ये ज़ीना अपना...
ज़ुरअत क़लंदर बख़्श

7970
हाल ख़ुल ज़ायेगा,
बेताबी--दिलक़ा हसरत...
बार बार आप उन्हें,
शौक़से देख़ा क़रें.......