4896
ज़िंदगीकी कसौटीसे,
हर रिश्ता
गुज़र गया;
कुछ निकले खरे सोनेसे,
कुछका
पानी उतर गया...
4897
शायरानासी है, ज़िन्दगीकी फ़ज़ा,
आप भी ज़िन्दगीका मजा लीजिये;
मैं ग़ज़ल बन गयी
आपके सामने,
शौक़से अब
मुझे गुनगुना लीजिये...
4898
बिन मेरे रह
ही जायेगी,
कोई
न कोई कमी;
तुम ज़िन्दगीको,
जितनी
मर्जी सवाँर लो...
4899
कुछ रिश्ते,
मुनाफ़ा
नहीं देते...
मगर,
ज़िन्दगीको,
अमीर बना देते
हैं...!
4900
ज़िन्दगी
सारी गुज़र गई,
काँटोकी कगारपर फराज...
और फूलोंने मचाई हैं,
भीड हमारी
मज़ारपर.......!