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6 November 2019

4991 - 4995 ज़िंदगी परिंदे कश़मकश इंतज़ार बात दामन ख्वाहिश वादा शायरी


4991
पूछ रही है आज,
मेरी शायरीयाँ मुझसे कि...
कहां उड गये वो परिंदे,
जो वादा किया करते थे...

4992
मुद्दत हो गयी,
इक वादा किया था उन्होनें;
कश़मकशमें हूँ,
याद दिलाऊँ की इंतज़ार करूँ मैं...

4993
वादा करते तो कोई बात होती,
मुझे ठुकराते तो कोई बात होती;
यूँ ही क्यों छोड़ दिया दामन,
कसूर बतलाते तो कोई बात होती...

4994
वादा था ज़िंदगीसे,
करेंगे ख़ुदकुशी...
अपनी ही ज़बान तले
दबके मर गए हम...

4995
हमने तो उसकी हर ख्वाहिश,
पूरी करनेका वादा किया था...
पर हमें क्या पता था की,
हमें छोडना भी उसकी एक ख्वाहिश होगी...!