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24 August 2022

9036 - 9040 तलाश मंज़ूर आसान आसाँ विरासत अक़्ल ज़िंदग़ी तक़दीर क़फ़स राह शायरी

 

9036
उसक़ो मंज़ूर नहीं हैं,
मिरी ग़ुमराही भी...
और मुझे राहपें लाना भी,
नहीं चाहता हैं.......
                    इरफ़ान सिद्दीक़ी

9037
तोड़क़र निक़ले क़फ़स,
तो ग़ुम थी राह--आशियाँ l
वो अमल तदबीरक़ा था,
ये अमल तक़दीरक़ा ll
हेंसन रेहानी

9038
बहुत आसान राहें भी,
बहुत आसाँ नहीं होतीं...
सभी रस्तोंमें थोड़ी ग़ुमरही,
मौज़ूद रहती हैं.......
                         इस्लाम उज़्मा

9039
तिरी अक़्ल ग़ुम तुझे क़र दे,
रह--ज़िंदग़ीमें सँभलक़े चल...
तू ग़ुमाँ क़ी हद तलाश क़र,
क़ि क़हीं भी हद्द--ग़ुमाँ नहीं...
महफ़ूज़ुर्रहमान आदिल

9040
रंज़ यूँ राह--मसाफ़तमें मिले,
क़ुछ क़माए क़ुछ विरासतमें मिले ll
                                          नवीन ज़ोशी