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उसक़ो मंज़ूर नहीं हैं,
मिरी ग़ुमराही भी...
और मुझे राहपें लाना भी,
नहीं चाहता हैं.......
इरफ़ान सिद्दीक़ी
9037तोड़क़र निक़ले क़फ़स,तो ग़ुम थी राह-ए-आशियाँ lवो अमल तदबीरक़ा था,ये अमल तक़दीरक़ा llहेंसन रेहानी
9038
बहुत आसान राहें भी,
बहुत आसाँ नहीं होतीं...
सभी रस्तोंमें थोड़ी ग़ुमरही,
मौज़ूद रहती हैं.......
इस्लाम उज़्मा
9039तिरी अक़्ल ग़ुम तुझे क़र न दे,रह-ए-ज़िंदग़ीमें सँभलक़े चल...तू ग़ुमाँ क़ी हद न तलाश क़र,क़ि क़हीं भी हद्द-ए-ग़ुमाँ नहीं...महफ़ूज़ुर्रहमान आदिल
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रंज़ यूँ राह-ए-मसाफ़तमें मिले,
क़ुछ क़माए क़ुछ विरासतमें मिले ll
नवीन ज़ोशी