Showing posts with label दिल किताब लिफाफे चिठ्ठी पैगाम लापरवाही आदत बेशक आशियाँ गुनाह जिंदगी शायरी. Show all posts
Showing posts with label दिल किताब लिफाफे चिठ्ठी पैगाम लापरवाही आदत बेशक आशियाँ गुनाह जिंदगी शायरी. Show all posts

19 February 2020

5491 - 5495 दिल किताब लिफाफे चिठ्ठी पैगाम लापरवाही आदत बेशक आशियाँ गुनाह जिंदगी शायरी


5491
अब मत खोलना,
मेरी जिंदगीकी पुरानी किताबोंको...
जो था वो मैं रहा नहीं,
जो हूँ वो किसी को पता नहीं...!

5492
बंद लिफाफेमें,
रखी चिठ्ठीसी हैं ये जिंदगी...
पता नहीं अगलेही पल,
कौनसा पैगाम ले आये...

5493
पता नही कब जाएगी,
तेरी लापरवाहीकी आदत;
पगली, कुछ तो सम्भालकर रखती...
मुझे भी खो दिया.......!

5494
पता नहीं क्या रिश्ता था,
टहनीसे उस पंछीका...
उसके उड़ जाने पर वो,
कितनी देर कांपती रही...

5495
दिल तो बेशक,
उनके हवाले किया मैंने।
मेरे मनको कब अपना आशियाँ बनाया,
ये हमें पता नहीं।
गुनाह तो बेशक किया था उन्होंने,
हमें सतानेका।
पर बेगुनाह कब उन्हें दिलने बनाया,
ये हमें पता नहीं