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25 April 2018

2646 - 2650 दिल बेचैनी कसम लहर किनारा नसीब दुनियाँ तन्हाई आँखे मेहफिल वजूद किस्मत शायरी


2646
तुम्हारी कसम, मैं तुम्हारा नहीं हूँ,
भटकती लहर हूँ, किनारा नहीं हूँ,
तुम्हारा ही क्या, मैं हूँ नहीं किसीका...
मुझे दुःख रहेगा अंततक इसीका.......

2647
हर किसीके नसीबमें,
कहाँ लिखी होती हैं चाहतें;
कुछ लोग दुनियाँमें आते हैं,
सिर्फ तन्हाईयोंके लिए.......

2648
आज दिलमें बेचैनी,
कुछ ज्यादा हो रही हैं;
तुम जहाँ भी हो,
ठीक तो हो ना.......?

2649
बहोत देर तक ये 'मेहफिल',
दिलमें होशियार रहती हैं...
आँखे कितनी भी बंद करो,
कम्बक्त नींद कहाँ आती हैं...

2650
इतना भी ना तराशो,
कि वजूद ही ना रहे हमारा;
हर पत्थरकी किस्मतमें,
नहीं होता संवरकर खुदा हो जाना !