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2 August 2018

3101 - 3105 दिल मोहब्बत अजीब आवाज़ एहसान नफरत ठोकर किस्मत बारीश ख्वाहिश पलके कशमकश शायरी


3101
अजीब शर्त रख दी,
दिल-दारने मिलनेकी,
सूखे पत्तोंपर चल कर आना,
और आवाज़ भी हो.......

3102
बडा एहसान हैं,
तेरी नफरतोंका मुझपें;
ऐसी ठोकर लगी की,
चलना सिखा दिया।

3103
छोड दो ठोकरमें मुझको यारो,
साथ मेरे रहकर क्या पाओगे;
अगर हो गई आपको भी मोहब्बत कभी,
मेरी तरह तुम भी पछताओगे...

3104
किस्मतकी बारीश,
कुछ ऐसी होती हीं मुझपर की...
ख्वाहिशें सुखती हीं और,
पलके भिगती हीं

3105
हीं होकर भी नहीं हूँ,
कहीं होकर भी हूँ...
बड़ी कशमकशमें हूँ कि,
कहाँ हूँ और कहाँ नहीं हूँ !!!