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13 May 2018

2731 - 2735 प्यार जमाने परवाह नाराज़ रिश्ते याद शोर हिसाब अजीब जुल्म दुनियाँ बर्दाश्त शायरी


2731
नाराज़गियोंको कुछ देर चुप रहकर,
मिटा लिया करो,
ग़लतियोंपर बात करनेसे,
रिश्ते उलझ जाते हैं...!

2732
हम शोर करते हैं,
तो आपकी यादोंमें बसते हैं;
बस आप हिसाब करते रहना,
हम शोर करते रहेंगे.......!

2733
अजीब जुल्म करती हैं,
उनकी यादें मुझपर;
सो जाऊँ तो उठा देती हैं,
जाग जाऊँ तो रुला देती हैं।

2734
जी भरके देखू तुझे अगर गवारा हो,
बेताब मेरी नज़रे हो और चेहरा तुम्हारा हो,
जानकी फिकर हो जमानेकी परवाह,
एक मेरा प्यार हो जो बस तुमारा हो !

2735
यूँ तो दुनियाँका,
हर ग़म सहा हँसते हँसते,
जाने क्यों तुझसे मिली ये तन्हाई,
बर्दाश्त नहीं होती.......!