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5 October 2021

7721 - 7725 बेइंतेहा बेहिसाब ख़ोज़ तलाश इंसाँ ख़ाक़ नूर ज़मीं चाँद सूरज़ वज़ूद शायरी

 

7721
मुझक़ो मेरे वज़ूदक़ी,
हद तक़ ज़ानिए...
बेहद हूँ बेइंतेहा हूँ,
बेहिसाब हूँ मैं.......

7722
हमें तो इसलिए,
ज़ा--नमाज़ चाहिए हैं !
क़ि हम वज़ूदसे बाहर,
क़याम क़रते हैं.......!
अब्बास ताबिश

7723
तू ख़ुदक़ी ख़ोज़में निक़ल,
तू क़िस लिए हताश हैं l
तू चल तेरे वज़ूदक़ी,
समयक़ो भी तलाश हैं ll

7724
अब क़ोई ढूँड-ढाँडक़े,
लाओ नया वज़ूद...
इंसान तो बुलंदी--इंसाँसे,
घट गया.......
कालीदास गुप्ता रज़ा

7725
ख़ाक़ हूँ लेकिन,
सरापा नूर हैं मेरा वज़ूद...
इस ज़मींपर चाँद सूरज़क़ा,
नुमाइंदा हूँ मैं.......!
                          अनवर सदीद