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12 June 2019

4341 - 4345 मोहब्बत जरुरत नज़र याद ख़्वाब आँख नींद इन्तजार गुनाह ख्वाहिश हसरत शायरी


4341
नहीं मालूम हसरत हैं,
या तू मेरी मोहब्बत हैं...
बस इतना जानता हूँ कि,
मुझको तेरी जरूरत हैं.......

4342
मैं आपकी नज़रोंसे,
नज़र चुरा लेना चाहता हूँ...
देखनेकी हसरत हैं,
बस देखते रहना चाहता हूँ.......

4343
मुझे मालूम हैं,
ऐसा कभी मुमकिन ही नहीं...
फ़िरभी हसरत रहती हैं,
कि तुम याद करोगी.......

4344
तुझे छूनेकी हसरत,
ना जाने क्या ख़्वाब दिखा जाती हैं...
आँखोंमें इन्तजार और,
रातोकी नींद उड़ा जाती हैं.......

4345
हसरत पूरी ना हों,
तो ना सही...
ख्वाहिश करना,
कोई गुनाह तो नहीं...!