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असीराने–कफसकी,
आपबीती पूछते क्या हो...
यहाँ ऐ अम्न कज्जकोंसे,
बदतर पासबाँ देखे.......
अम्न लखनवी
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मेरे ताइरे-कफसको,
नहीं बागबाँसे रंजिश...
मिले घरमें आबोदाना तो,
यह दाम तक
न पहूंचे.......
शकील बदायुनी
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गनीमत हैं कफस,
फिक्रे-रिहाई क्यों करें हमदम;
नहीं मालूम अब,
कैसी हवा चलती हो गुलशनमें...
साकिब लखनवी
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साँसोका
पिंजरा किसी दिन
टूट जायेगा,
ये मुसाफिर किसी राहमें
छूट जायेगा,
अभी जिन्दा हूँ तो
बात लिया करो,
क्या पता कब
हमसे खुदा रूठ
जायेगा ll
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अब इससे भी बढ़कर,
गुनाह-ए-आशिकी क्या होगा...
जब रिहाईका वक्त आया तो,
पिंजरेसे
मोहब्बत हो चुकी
थी.......!