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4 April 2019

4076 - 4080 ख़ुदगर्ज़ तलब शिद्दत प्यास लफ्ज मसरूफ़ याद मुद्दत बिखर शिद्दत शायरी


4076
ख़ुदगर्ज़ बना देती हैं,
तलबकी शिद्दत भी;
प्यासेको कोई दूसरा,
प्यासा नहीं लगता...

4077
सारे मसरूफ़ हैं यहाँ,
दूसरोंकी कहानियाँ जाननेमें...
इतनी शिद्दतसे ख़ुदको,
अगर पढ़ते, तो ख़ुद़ा हो जाते...!

4078
मेरे लफ्जोको,
इतनी शिद्दतसे ना पढा करो;
कुछ याद रह गया तो,
हमे भूल नही पाओगे...!

4079
टूटकर बिखरना भी हमारा,
बहुत लाजमी था... 
शिद्दतसे दिल तोड़ा उसने,
शिद्दतसे चाहनेके बाद...

4080
जिसे शिद्दतसे चाहो,
वो मुद्दतसे मिलता हैं...
बस मुद्दतसे ही नहीं मिला,
कोई शिद्दतसे चाहने वाला...