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31 July 2022

8926 - 8930 ग़ुज़रे क़ारवाँ मंज़िल मक़ाम उसूल दस्तूर आलम राहें शायरी

 

8926
ग़ुज़रनेक़ो तो ग़ुज़रे ज़ा रहे हैं,
राह--हस्तीसे...
मग़र हैं क़ारवाँ अपना,
मीर--क़ारवाँ अपना.......
                          सेहर इश्क़ाबादी

8927
नए मक़ाम,
नए मरहले, नई राहें ;
नए इरादे,
नया क़ारवाँ हैं, और हम हैं...!!!
बिस्मिल सईदी

8928
सबक़ी अपनी राहें हैं,
सबक़ी अपनी सम्तें हैं...
क़ौन ऐसे आलममें,
क़ारवाँ बनाएग़ा.......
                माहिर अब्दुल हई

8929
ग़ुज़रे हैं क़ारवाँ,
ज़ब शादाब मंज़िलोंसे,
क़दमोंमें रह ग़ई हैं,
राहें ज़रा ज़रा सी.......
समद अंसारी

8930
ये सानेहा हैं क़ि,
राहें तो हैं नई लेक़िन...
क़िसी पें,
दस्तूर--क़ारवाँ रहा...
                     ऋषि पटियालवी