31 March 2017

1167


सीने पे तीर खाके भी,
अगर कोई मुस्करा दे मोहसिन।
निशाना लाख अच्छा हो,
मगर बेकार हो जाता है.......

1166

तेरी ख्वाइश कर ली तो,
कौनसा गुनाह कर लिया मोहसिन।
लोग तो दुआओं में,
पूरी कायनात मांग लिया करते है …….!

30 March 2017

1165


चलो चाँद का किरदार,
अपना लेते है फ़राज़।
दाग अपने पास रखके,
रोशनी बाँट देते है…….

1164


सुना है दिल समंदर से भी,
गहरा होता है फ़राज़।
फिर क्यूँ नही समाया,
कोई और उसके सिवा.......

1163


अगर तुम्हे यकीन नही,
तो कहने को कुछ नही मेरे पास फ़राज़।
अगर तुम्हे यकीन है,
तो मुझे कुछ कहने की जरूरत ही नही.......

1162


कितना कुछ जानता होगा,
वो शख्स मेरे बारे मे फ़राज़।
मेरे मुस्कराने पर भी जिसने पूछ लिया,
की तुम उदास क्यूँ हो.......

1161


अब मौत से कह दो,
हमसे नाराजगी ख़त्म भी करे फ़राज़।
वो बहुत बदल गए है,
जिनके लिए हम जिया करते थे.......

29 March 2017

1160


करता है वो मेरे
ज़ख़्मों का इलाज फ़राज़।
कुरेद कर देख लेता है रोज
और कहता है वक़्त लगेगा . . . . . . .

1159


वो मुझसे पूछती है
ख्वाब किस किस के देखते हो फ़राज़
बेखबर जानती ही नही
यादें उसकी सोने कहाँ देती है. . . . . . .

1158


ये दिल ही तो जानता है
मेरी पाक मुहब्बत का आलम फ़राज़।
के मुझे जीने के लिए
साँसों की नही तेरी जरूरत है . . . . . . .

1157


तेरे हुस्न को पर्दे की
जरूरत ही क्या है फ़राज़।
कौन रहता है
होश मे तुझे देखने के बाद . . . . . . .

1156


दीदार के काबिल
कहाँ मेरी नजर है फ़राज़।
ये तेरी इनायत है के
रुख तेरा इधर है......

28 March 2017

1155


देख ली तेरी इमानदारी दिल
तू मेरा और...
फिक्र किसी और की...?

1154


ख़ामोशियाँ भी
अजीब रिश्ता निभाती है...
लब अक्सर खुलते हैं ,
पर कभी आवाज़ नहीं आती है...

1153


तुमने अभी देखी ही कहां है,
हमारी फूलों जैसी वफा,
हम जिस पर खिलते हैं,
उसी पर मुरझा जाते हैं...

1152


यूँ तो ज़िन्दगी तेरे सफर से
शिकायते बहुत थी...
मगर दर्द जब दर्ज कराने पहुँचे
तो कतारे बहुत थी..!!

1151


हर बार यही होता है मेरे साथ,
हर एक रिश्ता नयी चोट दे जाता है !!

27 March 2017

1150


किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह;
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह;
किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी;
छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह।

1149


एक और शाम बीत चली है
उन्हें चाहते हुए,
वो आज भी बे-खबर है
बीते हुए कल की तरह...

1148


कितने खुबसूरत हुआ करते थे,
बचपन के वो दिन...
के सिर्फ दो उंगलिया जुडने से,
दोस्ती फिर शुरू हो जाती थी . . . !