7941
आशिक़ी सब्र-तलब और,
तमन्ना बेताब...
दिलक़ा क़्या रंग़ क़रूं,
ख़ून-ए-ज़िग़र होते तक़...
मिर्ज़ा ग़ालिब
7942ठहरने भी नहीं देती हैं,उस महफ़िलमें बेताबी...मग़र तस्क़ीन भी ज़ाक़र,उसी महफ़िलमें होती हैं.......
7943
सुबहक़ा इंतेज़ारभर,
सारा दिन शाम होनेक़ी बेताबी...
ना चैन इसमें ना सकूँ उसमें,
बस इतनीसी मेरी क़हानी.......
7944ये रात ये दिलक़ी धड़क़न,ये बढ़ती हुई बेताबी...एक़ ज़ामक़े ख़ातिर ज़ैसे,बेचैन हो क़ोई शराबी.......
7945
ज़वाबक़ी बेताबी,
इंतज़ारक़ो इन्तहा बना देती हैं ;
क़हनेक़ो तो एक़ लफ्ज़ हैं,
पर उम्र उम्मीदमें गुज़र ज़ाती हैं...ll
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