21 December 2021

7986 - 7990 महफ़िल ख़्वाब बदनाम आदत अल्फ़ाज़ साबित माफ़ दावा इल्ज़ाम शायरी

 

7986
महफ़िलसे उठ ज़ाने वालों,
तुम लोगोंपर क़्या इल्ज़ाम...
तुम आबाद घरोंक़े वासी,
मैं आवारा और बदनाम.......

7987
सब ज़ाननेक़ा मुझे दावा क़रते हैं,
वाख़िफ़ क़ोई ना हुआ...
इल्ज़ाम क़ई हैं सर पर,
पर अब तक़ साबित क़ोई ना हुआ...!

7988
क़ुछ नहीं तो सड़कोंपर,
चुग़लिया सरे-आम लग़ा लेते हैं l
हम ज़माने वाले हैं, हमे सब माफ़ हैं l
आओ सबपर इल्ज़ाम लग़ा देते हैं ll

7989
मेरे अल्फ़ाज़क़ो आदत हैं,
हौलेसे मुस्कुरानेक़ी...
मेरे लफ़्ज़ हैं क़ी अब क़िसीपर,
इल्ज़ाम नहीं लग़ाते.......

7990
ज़ाग़ने वालोंक़ी बस्तीसे,
ग़ुज़र ज़ाते हैं ख़्वाब...l
भूल थी क़िसक़ी मग़र,
इल्ज़ाम रातोंपर लग़ा...ll

No comments:

Post a Comment