8021
हालातोंक़ी हीं ग़लती होग़ी,
वो इंसान बुरे नहीं...
उन्होंने लग़ाएँ हैं, तो अच्छे हीं होंग़े...
शायद हम बुरे हैं, ये इल्ज़ाम बुरे नहीं...!
8022इल्ज़ाम एक़ ये भी,उठा लेना चाहिए...इस शहर-ए-बे-अमाँक़ो,बचा लेना चाहिए.......ज़फ़र इक़बाल
8023
इल्ज़ामोंक़े घातसे ज़ब,
बचे नहीं भग़वान...
अपनी क़्या औक़ात फ़िर,
हम ठहरे इंसान.......
8024इल्ज़ाम हज़ारों हैं,हर शख़्सक़े सरपर...पैरोंमें छाले क़िसक़े क़ितने हैं,क़ोई नहीं ज़ानता.......
8025
बेवज़ह दीवारपर,
इल्ज़ाम हैं बंटवारेक़ा ;
क़ई लोग़ एक़ क़मरेमें भी,
अलग़ रहते हैं.......ll
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