8006
रिश्तेक़ी लक़ड़ी हमारी खोख़ली थी,
इल्ज़ाम दिमाग़क़ो दे रहे हैं...
बेवफ़ाईक़ा ग़ुनाह तुमने क़िया,
इल्ज़ाम क़िस्मतक़ो दे रहे हैं.......
8007दियोंक़ो ख़ुद,बुझाक़र रख़ दिया हैं...और इल्ज़ाम अब,हवापर रख़ दिया हैं.......महशर बदायुनी
8008
उदास ज़िन्दग़ी, उदास वक़्त,
उदास मौसम...
क़ितनी चीज़ोंपें इल्ज़ाम,
लग़ा हैं तेरे ना होनेसे.......
8009फ़िर शामक़ो आए तो,क़हा सुबहक़ो यूँ ही...रहता हैं सदा आपपर,इल्ज़ाम हमारा.......इंशा अल्लाह ख़ान
8010
हर बार इल्ज़ाम हमपर ही,
लग़ाना ठीक़ नहीं...
वफ़ा ख़ुदसे नहीं होती,
ख़फ़ा हमपर होते हो.......
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