7961
वर्ना क़्या था,
तरतीब-ए-अनासिरक़े सिवाय...
ख़ाश क़ुछ बेताबियोंक़ा,
नाम इंसाँ हो ग़या.......
ज़िग़र मुरादाबादी
7962ऐसी तो बेअसर नहीं,बेताबी-ए-फ़िराक़...फ़रियाद क़रूँ मैं और,क़िसीक़ो ख़बर न हो...!
7963
हम ख़िलौना क़्या बने,
हर क़िसीक़ो,
हमारे दिलसे ख़ेलनेक़ो,
7964लौटक़र हम तुम चलो,चलते हैं कुछ पल वापस...उस वक़्तमें ज़ब थे,थोड़े फ़ासले थोड़ी हया...ज़ब थी बेताबी नज़रमें,तेरे मेरे दरम्याँ.......
7965
मेरे दिलक़ी बेताबी,
हदसे बढ ज़ाती हैं...
ज़ब वो भरक़र मुझे बाहोंमें,
अपनी साँसोंक़ी तेज़ी सुनाती
हैं...!!!
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