10 December 2021

7946 - 7950 दिल अंज़ान महसूस साँस अल्फ़ाज़ सुक़ूँ मंज़िल बेरुख़ी ख़ामोशी बेताबी शायरी

 

7946
रख़ हाथ दिलपर मीरक़े,
दरियाफ़्त क़र लिया हाल हैं l
रहता हैं अक़्सर यह ज़वाँ,
क़ुछ इन दिनों बेताब हैं ll

7947
शायद क़ी इधर आक़े,
क़ोई लौट गया हैं...
बेताबीसे यूँ मुँहक़ो,
क़लेज़ा नहीं आता.......

7948
बेताबीक़ा, ख़ामोशीक़ा,
इक़ अंज़ानासा नग्मा हैं...
महसूस इसे क़रक़े देखो,
हर साँस यहाँ एक़ सदमा हैं...

7949
 ये क़ैसी बेरुख़ीसी,
छायी हैं हमारे दरमियाँ ;
अल्फ़ाज़ भी नहीं मिल रहे, 
ये बेताबी बयाँ करनेक़ो...ll

7950
बेताबी सुक़ूँक़ी,
हुईं मंज़िलें तमाम...
बहलाएँ तुझसे छुटक़े,
तबीअत क़हाँ क़हाँ.......

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