7956
हैं सौ तरीक़े और भी,
ऐ बे-क़रार दिल...
इज़हार-ए-शिक़वा,
शिक़वेक़े अंदाज़में न हो...
मंज़र लख़नवी
7957ऐ शबेग़ोर...वो बेताबी-ए-शब हाय फ़िराक़,आज़ आरामसे सोना,मेरी तक़दीरमें न था...
7958
रातक़ी चाँदनीमें,
बेरंग हर बात थी ;
मुझे मोहब्बतक़ी,
ख़्वाहिश थी और...
उन्हें दूर ज़ानेक़ी,
बेताबी थी.......
7959दिलक़ी बेताबी,बयाँ होने लग़ी...क़्या छुपाया हैं,लबे-ख़ामोशमें...
7960
ऐसे ही मैं भी तड़प उठा था,
तेरी पलक़ोंक़ो क़िसी ग़ैरक़ी...
पलकोंक़े क़रीब देख़क़े,
मेरी बेताबी मेरी बेचैनीक़ो...
तुमने तब क़्यूँ नहीं समझा,
फ़िर इल्ज़ाम क़्यूँ.......
No comments:
Post a Comment