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18 March 2017

1104 ज़िंदगी नादान चुप दर्द सुबह शाम जमाने दास्तां नाम शायरी


1104
ज़िंदगी हैं नादान इसलिए चुप हूँ...
दर्द ही दर्द सुबह शाम इसलिए चुप हूँ...
कह दूँ जमानेसे दास्तां अपनी...
उसमें आयेगा तेरा नाम इसलिए चुप हूँ...!