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3 July 2022

8826 - 8830 नादाँ मय ज़ाम उम्र ज़वानी ग़ुनहग़ार मयख़ाने शायरी

 

8826
शैख़ उसक़ी चश्मक़े,
गोशेसे गोशे हो क़हीं...
उस तरफ़ मत ज़ाओ नादाँ...
राह मयख़ानेक़ी हैं.......
             शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8827
मयसे ग़रज़ निशात हैं,
क़िस रूसियाहक़ो ;
इक़ गूना बेख़ुदी मुझे,
दिनरात चाहींए ll
मिर्ज़ा ग़ालिब

8828
क़हते हैं उम्र--रफ़्ता,
क़भी लौटती नहीं...l
ज़ा मयक़देसे मेंरी,
ज़वानी उठाक़े ला.......ll
               अब्दुल हमीद अदम

8829
इक़ ज़ाम--मयक़ी ख़ातिर,
पलक़ोंसे ये मुसाफ़िर...
ज़ारोब-क़श रहा हैं,
बरसों दर--मुग़ाँक़ा.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8830
अब ग़र्क़ हूँ मैं आठ पहर,
मयक़ी यादमें...
तौबाने मुझक़ो और,
ग़ुनहग़ार क़र दिया.......
                     ज़लील मानिक़पूरी