8826
शैख़ उसक़ी चश्मक़े,
गोशेसे गोशे हो क़हीं...
उस तरफ़ मत ज़ाओ नादाँ...
राह मयख़ानेक़ी हैं.......
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
8827मयसे ग़रज़ निशात हैं,क़िस रूसियाहक़ो ;इक़ गूना बेख़ुदी मुझे,दिनरात चाहींए llमिर्ज़ा ग़ालिब
8828
क़हते हैं उम्र-ए-रफ़्ता,
क़भी लौटती नहीं...l
ज़ा मयक़देसे मेंरी,
ज़वानी उठाक़े ला.......ll
अब्दुल हमीद अदम
8829इक़ ज़ाम-ए-मयक़ी ख़ातिर,पलक़ोंसे ये मुसाफ़िर...ज़ारोब-क़श रहा हैं,बरसों दर-ए-मुग़ाँक़ा.......मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
8830
अब ग़र्क़ हूँ मैं आठ पहर,
मयक़ी यादमें...
तौबाने मुझक़ो और,
ग़ुनहग़ार क़र दिया.......
ज़लील मानिक़पूरी
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