8921
वो वापस फ़िर,
ज़मींपर लौटती हैं ;
ज़ो राहें लेक़े ज़ाती हैं,
शिख़र तक़ ll
ध्रुव ग़ुप्त
8922रह ग़ए वो बे-निशाँ,ज़ो राह-ए-रस्मीपें चले...ज़िनक़ी राहें थी अलग़,वो सब मिसाली हो ग़ए.......नवीन ज़ोशी
8923
इलाही नूरसे रौशन हैं,
राहें उसक़े बंदोंक़ी...
वो ऐसी रौशनी हैं ज़ो,
क़भी देख़ी नहीं ज़ाती.......
साहिल अज़मेरी
8924माहौल सबक़ा एक़ हैं,आँख़ें वहीं, नज़रें वहीं...सबसे अलग़ राहें मिरी,सबसे ज़ुदा मंज़र मिरा.......क़ाविश बद्री
8925
क़रनी क़रते राहें,
तक़ते हमने उम्र गँवाई हैं...
ख़ूबी-ए-क़िस्मत ढूँडक़े हारी,
हम ऐसे नाक़ाम क़हाँ ll
मुख़्तार सिद्दीक़ी
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