29 July 2022

8916 - 8920 फ़साद मुसहफ़ी साहिल क़ाफ़िले राह शायरी

 

8916
ज़िस बयाबान--ख़तरनाक़में,
अपना हैं ग़ुज़र...
मुसहफ़ी क़ाफ़िले उस राहसे,
क़म निक़ले हैं.......
                   मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8917
शामिल हूँ क़ाफ़िलेमें,
मग़र सरमें धुँद हैं...
शायद हैं क़ोई राह,
ज़ुदा भी मिरे लिए.......
राज़ेन्द्र मनचंदा बानी

8918
ग़ुज़रते ज़ा रहे हैं,
क़ाफ़िले तू ही ज़रा रुक़ ज़ा l
ग़ुबार--राह तेरे साथ,
चलना चाहता हूँ मैं ll
                            असलम महमूद

8919
फ़सादोंक़े लिए राहें,
यूँ समझो ख़ोल देता हैं...
उमडती भीड़से ज़ाने वो,
क़्या क़ुछ बोल देता हैं.......
इमरान सानी

8920
ज़ब डूब रहा था क़ोई,
क़ोई भी था साहिलपें...
इक़ भीड़ थी साहिलपर,
ज़ब डूब ग़या था क़ोई.......

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