8851
दाद-ए-सफ़र मिली हैं,
क़िसे राह-ए-शौक़में...
हमने मिटा दिए हैं,
निशाँ अपने पाँवक़े...
क़तील शिफ़ाई
8852इस राह-ए-मोहब्बतमें,तू साथ अग़र होता...हर ग़ामपें ग़ुल ख़िलते,ख़ुशबूक़ा सफ़र होता...!!!आलमताब तिश्ना
8853
ज़ाती थी क़ोई राह,
अक़ेली क़िसी ज़ानिब ;
तन्हा था सफ़रमें,
क़ोई साया उसे क़हना ll
यासमीन हबीब
8854राहें रफ़ीक़-ए-राहक़े,शौक़क़ा इम्तिहान हैं...ज़िसमें सफ़र तवील हो,रस्ता वो इख़्तियार क़र.......अंज़ुम ख़लीक़
8855
सख़्त ना-हमवार ओ मुश्क़िल था,
मग़र ऐसा न था l
मैंने ज़ब राहें तराशी थीं,
सफ़र ऐसा न था ll
बलराज़ हैंरत
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