11 July 2022

8851 - 8855 शौक़ मोहब्बत साया निशाँ मुश्क़िल इम्तिहान सफ़र राह शायरी

 

8851
दाद--सफ़र मिली हैं,
क़िसे राह--शौक़में...
हमने मिटा दिए हैं,
निशाँ अपने पाँवक़े...
                    क़तील शिफ़ाई

8852
इस राह--मोहब्बतमें,
तू साथ अग़र होता...
हर ग़ामपें ग़ुल ख़िलते,
ख़ुशबूक़ा सफ़र होता...!!!
आलमताब तिश्ना

8853
ज़ाती थी क़ोई राह,
अक़ेली क़िसी ज़ानिब ;
तन्हा था सफ़रमें,
क़ोई साया उसे क़हना ll
                      यासमीन हबीब

8854
राहें रफ़ीक़--राहक़े,
शौक़क़ा इम्तिहान हैं...
ज़िसमें सफ़र तवील हो,
रस्ता वो इख़्तियार क़र.......
अंज़ुम ख़लीक़

8855
सख़्त ना-हमवार मुश्क़िल था,
मग़र ऐसा था l
मैंने ज़ब राहें तराशी थीं,
सफ़र ऐसा था ll
                                       बलराज़ हैंरत

No comments:

Post a Comment