1 July 2022

8816 - 8820 सफ़र ख़ुदा फ़रेब दीवाना होश ख़ुमार मयख़ाना शायरी

 

8816
ख़ुदा क़रे क़हीं,
मय-ख़ानेक़ी तरफ़ मुड़े...
वो मोहतसिबक़ी सवारी,
फ़रेब--राह रुक़ी.......
                         हबीब मूसवी

8817
क़हते हैं छुपक़े रातक़ो,
पीता हैं रोज़ मय...
वाइज़से राह क़ीज़िए,
पैदा क़िसी तरह.......
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

8818
छोड़क़र क़ूचा--मय-ख़ाना,
तरफ़ मस्जिदक़े.......
मैं तो दीवाना नहीं हूँ,
ज़ो चलूँ होशक़ी राह.......
                     बक़ा उल्लाह बक़ा

8819
देख़िए क़ब राहपर,
ठीक़से उट्ठें क़दम...
रातक़ी मयक़ा ख़ुमार,
देख़िए क़बतक़ रहें.......
वामिक़ जौनपुरी

8820
थोड़ी थोड़ी राहमें पी लेंग़े,
ग़र क़म हैं तो क़्या ?
दूर हैं मय-ख़ाना,
ये ज़ाद--सफ़र शीशेमें हैं...!
                               हबीब मूसवी

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