8831
पता नहीं होशमें हूँ,
या बेहोश हूँ मैं...
पर बहोत सोच समझक़र,
ख़ामोश हूँ मैं.......!
8832रूह क़िस मस्तक़ी प्यासी,ग़ई मयख़ानेसे...!मय उड़ी ज़ाती हैं साक़ी,तिरे पैमानेसे.......!!!दाग़ देहलवी
8833
भरक़े साक़ी ज़ाम-ए-मय,
इक़ और ला और ज़ल्द ला...
उन नशीली अंख़ड़ियोंमें,
फ़िर हिज़ाब आनेक़ो हैं.......
फ़ानी बदायूँनी
8834क़ाबे चलता हूँ,पर इतना तो बता...मय-क़दा क़ोई हैं,ज़ाहिद राहमें.......मुज़फ़्फ़र अली असीर
8835
मयख़ानेसे बढ़कर कोई,
ज़मीन नहीं ;
ज़हाँ सिर्फ़ क़दम लड़खड़ाते हैं,
ज़मीर नहीं ll
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