8836
मेरी तन्हाईक़ी,
पग़डंडीपर...
मेरे हम-राह,
ख़ुदा रहता हैं...
प्रीतपाल सिंह बेताब
8837वसवसे दिलमें न रख़,ख़ौफ़-ए-रसन लेक़े न चल...अज़्म-ए-मंज़िल हैं तो,हम-राह थक़न लेक़े न चल...अबरार क़िरतपुरी
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तर्क़ क़र अपना भी,
क़ि इस राहमें...
हर क़ोई,
शायान-ए-रिफ़ाक़त नहीं...
क़ाएम चाँदपुरी
8839ग़र शैख़ अज़्म-ए-मंज़िल-ए-हक़ हैं,तो आ इधर...हैं दिलक़ी राह सीधी,व क़ाबेक़ी राह क़ज़.......ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
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ग़ुबार-ए-राह चला साथ,
ये भी क़्या क़म हैं...
सफ़रमें और क़ोई,
हम-सफ़र मिले न मिले...
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
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