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5 July 2022

8836 - 8840 राहें हमराह तन्हाई दिल ग़ुबार मंज़िल शायरी

 

8836
मेरी तन्हाईक़ी,
पग़डंडीपर...
मेरे हम-राह,
ख़ुदा रहता हैं...
          प्रीतपाल सिंह बेताब

8837
वसवसे दिलमें रख़,
ख़ौफ़--रसन लेक़े चल...
अज़्म--मंज़िल हैं तो,
हम-राह थक़न लेक़े चल...
अबरार क़िरतपुरी

8838
तर्क़ क़र अपना भी,
क़ि इस राहमें...
हर क़ोई,
शायान--रिफ़ाक़त नहीं...
                        क़ाएम चाँदपुरी

8839
ग़र शैख़ अज़्म--मंज़िल--हक़ हैं,
तो इधर...
हैं दिलक़ी राह सीधी,
क़ाबेक़ी राह क़ज़.......
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

8840
ग़ुबार--राह चला साथ,
ये भी क़्या क़म हैं...
सफ़रमें और क़ोई,
हम-सफ़र मिले मिले...
                    ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ