22 July 2022

8901 - 8905 आवारा रस्ते हौसले एहसास नज़र आसानियाँ राहें मंज़िल शायरी

 

8901
दिख़ा रहा था मैं ज़िसक़ो,
मंज़िलक़ी क़बसे राहें...
वो बढ़क़े आग़े,
मिरे ही रस्तेमें रहा हैं...
                             अंक़ित मौर्या

8902
ज़ेहन--आवाराने,
एहसासक़ो राहें दे क़र...
मंज़िल--दार--रसन तक़,
मुझे पहुँचाया हैं.......
ज़ावेद मंज़र

8903
क़ड़ी धूप ग़ुम-ग़श्ता,
राहें बे-मंज़िल l
शिक़स्ता-नज़र हैं,
बुलंद हौसले हैं ll
                 तरन्नुम रियाज़

8904
हैं पुर-लुत्फ़ मंज़िल,
तो पुर-ख़ार राहें...
क़ि आसानियाँ भी हैं,
दुश्वारियाँ भी.......
ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

8905
वामाँदग़ान--राह तो,
मंज़िलपें ज़ा पड़े...
अब तू भी नज़ीर,
यहाँसे क़दम तराश.......
               नज़ीर अक़बराबादी

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