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13 November 2022

9376 - 9380 बहार मंज़िल मुक़द्दर सुख़न शायरी

 

9376
शग़ुफ़्ता बाग़--सुख़न हैं,
हमींसे साबिर...
ज़हाँमें मिस्ल--नसीम--बहार,
हम भी हैं.......
                          फ़ज़ल हुसैन साबिर

9377
मारे हयाक़े हमसे,
वो क़ल बोलता था...
हम छेड़ छेड़क़र उसे,
लाए सुख़नक़े बीच.......!!!
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9378
रहिए अब ऐसी ज़ग़ह,
चलक़र ज़हाँ क़ोई हो l
हम-सुख़न क़ोई हो,
और हम-ज़बाँ क़ोई हो ll
                          मिर्ज़ा ग़ालिब

9379
बराए अहल--ज़हाँ,
लाख़ क़ज़-क़ुलाह थे हम ;
ग़ए हरीम--सुख़नमें तो,
आज़िज़ीसे ग़ए ll
इरफ़ान सत्तार

9380
मंज़िले-शेरो-सुख़न,
सबक़े मुक़द्दरमें क़हाँ...
यूँ तो हमने भी बहुत,
क़ाफ़िया-पैमाई क़ी.......