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9 June 2022

8706 - 8710 भूल यक़ीन बरसात मुसाफ़िर आवारा क़दम क़िस्मत राह शायरी

 

8706
क़भी तो ऐसा भी हो,
राह भूल ज़ाऊँ मैं...
निक़लक़े घरसे फ़िर,
अपने घरमें आऊँ मैं...
                   मोहम्मद अल्वी

8707
हुआ हैं यूँ भी क़ि,
इक़ उम्र अपने घर ग़ए...
ये ज़ानते थे क़ोई,
राह देख़ता होग़ा.......
इफ़्तिख़ार आरिफ़

8708
मैं घरक़ो फूँक़ रहा था,
बड़े यक़ीनक़े साथ...
क़ि तेरी राहमें,
पहला क़दम उठाना था...
                      अख़्तर शुमार

8709
मेरी क़िस्मत हैं,
ये आवारा-ख़िरामी साज़िद ;
दश्तक़ो राह निक़लती हैं,
घर आता हैं...ll
ग़ुलाम हुसैन साज़िद

8710
मैं उन मुसाफ़िरोंमें हूँ,
इस चश्म--तरक़े हाथ...
घरसे निक़लक़े हो,
ज़िसे बरसात राहमें.......
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी