14 March 2019

3986 - 3990 मोहब्बत दीवाना पाबंद वक्त आवारगी तंग बात अलफ़ाज़ राज फतेह गुरुर आजकल शायरी


3986
रात तो पाबंद हैं,
वक्तपर लौट जाती हैं...
नींदे आवारगी करती फिरती हैं,
आजकल.......!

3987
तंग नहीं करते हैं हम,
उन्हें आजकल...
ये बात भी,
उन्हें बहुत तंग करती हैं...!

3988
छुपाने लगा हूँ आजकल,
कुछ राज अपने आपसे;
सुना हैं कुछ लोग मुझको,
मुझसे ज्यादा जानने लगे हैं।

3989
आजकल अलफ़ाज़ नही मिलते,
लिखनेको...
मोहब्बतने हमे फिर,
दीवाना बना दिया.......!

3990
अपनी हर फतेहपर,
इतना गुरुर मत कर;
मिट्टीसे पूछ आजकल,
सिकंदर कहाँ हैं.......!

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