17 March 2019

3996 - 4000 मोहब्बत कद्र दिल्लगी घायल फ़साना जज़्बात महफिल लफ़्ज अलफ़ाज़ तन्हाई शायरी


3996
हमारी कद्र उनको होगी,
तन्हाईयोमें एक दिन...
अभी तो बहुत लोग हैं उनके पास,
दिल्लगी करनेके लिये...!

3997
ना कोई फ़साना हैं,
ना कोई जज़्बात;
मेरी तन्हाई और कुछ...
अनकहे अलफ़ाज़.......

3998
बिखरे अरमान भीगी पलकें,
और ये तन्हाई...
कहूँ कैसे कि मिला मोहब्बतमें,
कुछ भी नहीं.......।

3999
अजबसे वो दिन थे,
अजबसी वो रातें;
तन्हाईमें तन्हाईसे,
तन्हाईकी बातें.......।

4000
लफ़्जोकी दहलीजपर,
घायल जुबान हैं...
कोई तन्हाईसे,
तो कोई महफिलसे परेशान हैं...!

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