19 March 2019

4011 - 4015 चेहेरे शर्म याद नसीब बारिशें बाजार पलकें सुकून ख्वाहिशें शायरी


4011
दर्ज हैं इसमें,
ख्वाहिशें सबकी;
मेरे चेहेरेमें मेरा,
कुछ भी हीं...

4012
बेशर्म हो गयी हैं,
ये ख्वाहिशें मेरी...
मैं अब बिना किसी बहानेके,
तुम्हे याद करने लगा हूँ...!

4013
भरे बाजारसे अक्सर,
ख़ाली हाथ ही लौट आता हूँ...
पहले पैसे नहीं थे,
अब ख्वाहिशें नहीं रहीं...!

4014
मुझपर नसीबकी बारिशें,
कुछ इस तरहसे होती रहीं...
ख्वाहिशें सूखती रहीं और,
पलकें भीगती रहीं.......

4015
चलो चलकर,
सुकून ही ढूंढ लाएँ,  
ख्वाहिशें तो,
खत्म होनेसे हीं...!

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