16 March 2019

3991 - 3995 मुस्कुराहट खुश समझ जमीर गम लफ़्ज दिलोजान खबर मीठा आजकल शायरी


3991
बस वो मुस्कुराहट ही,
कहीं खो गई हैं...
बाकी तो मैं भी,
बहुत खुश हूँ आजकल...!

3992
आजकल समझकी,
बड़ी नासमझ हैं;
तभी तो अपने पराये,
पलमें हो जाते हैं...

3993
हर रोज आजकल,
मैं सरेआम बिकता हूँ...
मैं जमीर हूँ साहब,
आजकल कहाँ टिकता हूँ...

3994
खुशियाँ तो आजकल,
बोतलोंमें बंद हो गयी हैं...
गम जब बढ़ जाता हैं,
तो खरीद लाते हैं...।

3995
गुनगुनाते हैं हम लफ़्ज आपके आजकल,
चाहते हैं दिलोजानसे आपको आजकल;
इतना सून लो आप बेखबर,
आपके बिना कुछ मीठा हीं आजकल

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